552 साल पुरानी हाजी अली दरगाह का नाम वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल
मुंबई की हाजी अली दरगाह को वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया है। यह दुनिया की सबसे ज्यादा लोगो द्वारा घूमने आनी वाली दरगाहो में से सबसे शीर्ष पर है। 552 वर्ष पुरानी यह इंडो इस्लामिक कला की प्रतीक दरगाह ना केवल एक बहुत बड़ा धार्मिक स्थल है बल्कि यह एक पसंदीदा टूरिस्ट स्पॉट में से भी एक है।
इस दरगाह को मिले वर्ल्ड बुक के खिताब को वूर्ड रिकॉर्ड की टीम द्वारा दरगाह के चेयरमैन व वरिष्ठ ट्रस्टी को सौंपा गया।
दरगाह के चेयरमैन के अनुसार यह दरगाह अपने आप में खास है। उन्होंने कहा कि दरगाह में अलग अलग जाति, धर्म, समुदाय के लोग आते है ।दरगाह में एक दिन में लगभग 50,000 लोग आते है व शुक्रवार, शनिवार व रविवार को आंकड़ा एक लाख के करीब चला जाता है ।
यह दरगाह समुद्र के किनारे पर है । दरगाह में मार्वल की सुंदर कलाकारी से बनाई गई हाजी अली की समाधि का अपना महत्व है। यह दरगाह अभी निर्माणाधीन है जिस पर लगभग 40करोड़ का खर्चा आना अनुमानित है।
वर्ल्ड बुक रिकॉर्ड भारत के वाईस चांसलर उस्मान खान का कहना है कि यह दरगाह एक अलग विशेषता रखती है ना केवल इस लिए क्योंकि यह एक सुंदर जगह पर बनी है बल्कि इसके और भी कई कारण है की इसे वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया। उन्होंने कहा कि दरगाह के ट्रस्ट द्वारा वर्ल्ड बुक में अपने आप को शामिल करने के लिए आवेदन के बाद वर्ल्ड रिकॉर्ड की ग्राउंड टीम ने दरगाह के अनेक पहलुओं को देखा व जब उन्हें दरगाह वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल करने के लिए सही लगी तो उन्होंने इस रिपोर्ट को हेड क्वार्टर लंदन भेज दिया जिसने दरगाह को वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल करने की मंजूरी दी।
दरगाह की सुंदर कलाकारी व सुंदर जगह पर स्थित होने के साथ साथ दरगाह की धार्मिक भावनाओं के साथ भी काफी अधिक जुड़ाव है। हाजी अली की दरगाह सुंदर कलाकारी के साथ साथ सुंदर टूरिस्ट प्लेस भी है। यह लोग ना केवल घूमने आते है बल्कि दरबार में अपना माथा टेकने व आशीर्वाद लेने भी आते है। हाजी अली दरगाह में अलग तरह का सुकून है जिसका आनंद लेने लोग दूर दूर से यहां आते है।
हाजी अली की दरगाह मुंबई के वरली तट के निकट स्थित एक छोटे से टापू पर स्थित एक मस्जिद एवं दरगाह हैं। इसे सय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में सन १४३१ में बनाया गया था। यह दरगाह मुस्लिम एवं हिन्दू दोनों समुदायों के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखती है। यह मुंबई का महत्वपूर्ण धार्मिक एवं पर्यटन स्थल भी है।
दरगाह को सूफी संत सय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में बनाया गया था। हाजी अली ट्रस्ट के अनुसार हाजी अली उज़्बेकिस्तान के बुखारा प्रान्त से सारी दुनिया का भ्रमण करते हुए भारत पहुँचे थे।
हिंदी फीचर फिल्म फि़जा में पीर हाजी अली के ऊपर एक कव्वाली फिल्माई गयी है।
प्रसिद्ध हिंद फीचर फिल्म कुली का अंतिम दृश्य हाजी अली दरगाह में ही फिल्माया गया हैं।
हाजी अली की दरगाह वरली की खाड़ी में स्थित है। मुख्य सड़क से लगभग ४०० मीटर की दूरी पर यह दरगाह एक छोटे से टापू पर बनायी गयी है। यहाँ जाने के लिए मुख्य सड़क से एक सेतु बना हुआ है। इस सेतु की उँचाई काफी कम है और इसके दोनों ओर समुद्र है। दरगाह तक सिर्फ निम्न ज्वार के समय ही जाया जा सकता है। अन्य समय में यह सेतु पानी के नीचे डूबा रहता है। सेतु के दोनों ओर समुद्र होने के कारण यह रास्ता काफी मनोरम हो जाता है एवं दरगाह आने वालों के लिए एक विशेष आकर्षण है।
दरगाह टापू के ४५०० वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। दरगाह एवं मस्जिद की बाहरी दीवारें मुख्यतः श्वेत रंग से रंगी गयीं हैं। दरगाह के निकट एक ८५ फीट ऊँची मीनार है जो इस परिसर की एक पहचान है। मस्जिद के अन्दर पीर हाजी अली की मजार है जिसे लाल एवं हरी चादर से सज्जित किया गया है। मजार को चारों तरफ चाँदी के डंडो से बना एक दायरा है।
मुख्य कक्ष में संगमरमर से बने कई स्तम्भ हैं जिनके ऊपर रंगीन काँच से कलाकारी की गयी है एवं अल्लाह के नाम भी उकेरे गए हैं।
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